4 October 2022

सफल मोदिनोमिक्स

 



क्या होता यदि अविकसित/विकासशील भारत भी 1970 के दशक से ही IMF से अपनी GDP का चार गुना तक ऋण लेकर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास कर लेता?

UK, USA, JAPAN, GERMANY, FRANCE, ITLY इन सभी देशो ने यही किया. उस समय IMF की एक ही शर्त होती थी कि ऋण को चुकाने की पक्की गारंटी चाहिए, भले ही ब्याज देने के लिए नया ऋण ही क्यों न लेना पड़े.
इन तथाकथित विकसित देशो ने IMF से सस्ती दरों पर जमकर ऋण लिया. उस ऋण से नयी नयी कम्पनिया बनाकर आधारभूत ढांचागत सरंचना का निर्माण और औद्योगिक विकास किया. ऋण लेकर बनायीं गयी इन कंपनियों को शेयर बाजार में नामांकित करके ऊँचा लाभ अर्जित किया, जिसे पुनः शेयर बाजार में निवेश कर दिया गया, तदोपरांत परिस्तिथिनुसार ऋण तथा ब्याज IMF को लौटते भी रहे तथा नया ऋण लेते रहे.
ऋण लेकर विकास करने की व्यवस्था का यह प्रतिमान विगत 40-50 वर्षो तक अभूतपूर्व रूप से सफल भी रहा. आज ब्रिटेन के ऊपर उसकी अर्थव्यवस्था से तीन गुना ज्यादा बाहरी कर्ज चढ़ा हुआ है, (ब्रिटेन के ऊपर बाह्य ऋण 9.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर्स है, जबकि उसकी अर्थव्यवस्था लगभग 3.2 ट्रिलियन डॉलर्स की ही है). वर्तमान में ब्रिटेन का ब्याज देने के लिए लिये हुए ऋण का भुगतान असुंतलन उनकी GDP का 3% तक पहुँच गया है.
सिंगापुर पर बाह्य ऋण का बोझ उनकी GDP का चार गुना यानि 400% से भी ज्यादा है, इसी तरह जापान पर 100%, फ्रांस पर 400%, अमेरिका पर 100%, यूरोपीय यूनियन पर 190% कर्ज का बोझ है.

विकास के लिए चीन द्वारा IMF से ऋण लेकर बनायीं कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में निवेश करके धन कमाने से इतर तरीका अपनाया गया. चीन ने बैंको का अधिग्रहण किया और व्यापारिक समूहों को सस्ती दरो पर ऋण देना प्रारम्भ किया, हलाकि बैंको औव्यापारिक प्रतिष्ठानों के मध्य यह अलिखित समझौता था कि ऋण चुकाना नहीं है बल्कि अर्थव्यवस्था को बड़ा करना है ताकि बैंक अपनी ऋण दी हुयी पूँजी बढ़े हुए व्यापार से अर्जित लाभ द्वारा वसूल कर ले. इसलिए चीन की बैंकिंग व्यवस्था जनहितकारी न होकर घोर राष्ट्रवादी है जिसमे व्यक्ति या व्यापारिक समूहों को ऋण राष्ट्रनीति के अंतर्गत दिया जाता है जहाँ व्यक्तिगत लाभ/अचल सम्पति निर्माण का कोई स्थान नहीं है. संभवतः चीन पर आतंरिक ऋण उसकी GDP का 12 गुना यानि 1200% से भी ज्यादा हो सकता है. जबकि खता-बही में चीन का बाह्य ऋण उसकी GDP का लगभग 16%, और कुल ऋण 66% ही है.

चीन का आर्थिक विकास प्रतिमान अनुकरण करने के योग्य ही नहीं है, देर-सबेर इसकी हवा निकलना निश्चित है. वर्तमान में तथाकथित विकसित देशो का ऋण-विकास मॉडल संभव नहीं है क्योकि मंदी, युद्ध, विफल साम्यवाद (पूंजीवाद में निहित साम्यवाद भी), और शेयर बाजार के गिरने से उपजे भुगतान असुंतलन से महंगाई, बेरोजगारी और राजनितिक अस्थिरता का जोखिम उठाना व्यवहारिक नहीं रह गया है.

यदि समय रहते भारत के राजनेता 1970-80 के दशक में इस दौड़ में कूद पड़ते और आज भारत के ऊपर भी अमेरीका, जापान जितना ही ऋण होता तो भारत एक अतिविकसित देश बन चुका होता. भारत में तमाम वो सुविधाएं और अधोसरंचना उपलब्ध होती जो आज जापान, अमेरिका, ब्रिटेन आदी देशो में है. देश से गरीबी दूर हो चुकी होती.

परन्तु तात्कालिक राजनेताओ में दूरदृष्टि का अभाव, अर्थव्यवस्था को साधने के कौशल का ना होना, और राष्ट्रहित के स्थान पर व्यक्तिगत हितो को ऊपर रखने की मानसिक बीमारी के चलते यह सुनहरा अवसर हाथ से निकल गया.

वर्तमान समय में ऋण के चक्रव्यूह में उलझना हितकारी नहीं है इससे राष्ट्र के टूटने तक का आतंरिक और बाहरी खतरा उत्पन्न हो सकता है. अभी यह खतरा कुछ छोटे देशो पर मंडरा रहा है पर शीघ्र ही ऐसा विकसित देशो के साथ भी हो सकता है, और तब ऐसे देश विघटन का दंश झेलेंगे, अपनी प्रतिष्ठा खो देंगे, बेकारी, महंगाई, अभाव आदि से उपजे गृह युद्ध के पहले चरण में धकेल दिए जायेंगे, राजनितिक नेतृत्व अप्रासंगिक बन जायेगा. ऐसा होते देखना कोई भी देश, जनता और राजनैतिक नेतृत्व नहीं चाहेगा.

उपलब्ध विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प है सांस्कृतिक और सामाजिक नवचेतना का पुनर्जागरण करना. आर्थिक विकास इसका मात्र एक प्रतिफल होता है, विराट उद्देश्य तो विश्व को नया नेतृत्व तथा राह प्रदान करना है ताकि भारत विश्व गुरु के रूप में सदियों तक सकल विश्व पर राज कर सके.
यदि आप संवेदनशील है, अपनी आँखे खुली रखते है, और किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त है तो आप जान सकेंगे कि भारत का वर्तमान नेतृत्व इसी दिशा में अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अविरल कार्यरत है.

जातिवाद, कट्टर इस्लाम, भ्रष्टाचार, विपन्नता, और इंजीलवाद हमारी राह के रोड़े है, भारत देश की स्वर्ण धरा पर ऐसी खरपतवार को उखाड फेंके बिना राष्ट्र और हिन्दू चेतना के नवजागरण का यह महायज्ञ संपन्न नहीं हो सकेगा.

हम सभी को यथाशक्ति इस हेतु योगदान करने के लिए तत्पर और समर्थ रहना होगा.
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आलेख सन्दर्भ-
1- ब्रिटेन को पछाड़ कर भारत 2022 में विश्व की पांचवी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बना.
2- सफल मोदिनोमिक्स.