12 January 2024

POTENTIAL to POSSIBILITIES

Having POTENTIAL & to achieve POSSIBILITIES is like a journey of a Point of an ever expending Circle toward its Periphery. The actual is limited, the possibilities immense.

Considering that Point is of white color while Periphery is of red color and in between the two lies DESIRE, ABILITY and TIME to achieve Possibilities from the Potential. Potential is white- Cool in nature , Possibilities are Red- Vibrant in nature.


Till Potential does not meet DESIRE it remain unused and dormant.

Till Potential is not nourished with required ABILITY, Desire alone can not finish the journey.

Desire propels, Ability ensures but its TIME which is actually the limiting factor of this journey. Lack or abundance of Time actually determines the fate of journey.

The right combination of Desire, Ability and Time all three ensures the completion of journey (success).

Absence or scarcity of any or all the 3 factors result in no journey or limitation of journey thus determine success.



Desire works best when its a result of a BELIEF.

Ability can be strengthen after acquiring more required SKILLS.

Time can be taken off from other unimportant task and can be MANAGED for desired journey.



Its important to know that how one can GENERATE BELIEFS, ACQUIRE SKILLS and MANAGE TIME.

Belief can be generated only when there is no doubt and one submit to journey without condition. Beliefs are not fact based trust, its supreme trust which is beyond facts or 'if & but'.

Skills are acquired when one is in the company of able man ( A good teacher or inner conscious act as an able man).

Time can not be produced but definitely managed and allocated for chosen task only. Avoid Multitasking. Indulge in single task at a time.



Actually Desire-in the form of belief, Ability or skills and Time all three are pure ENERGY only. Higher energy ensures greater and longer journey thus bigger periphery of the ever expending circle is covered. It ensure Bigger success. That's the journey of life.

A Human is born as a potential and shall shape its future while exploring the possibilities of his potential.

Happy Journey!!



POINTS to PERIPHERY = POTENTIAL to POSSIBILITIES

DESIRE --> BELIEF --> GENERATE through Submission without Doubt.

ABILITY --> SKILLS --> ACQUIRE through LEARNING.

TIME --> ALLOCATE TIME --> MANAGE through SINGLE TASKING.

Harsch Kumar lall

4 October 2022

सफल मोदिनोमिक्स

 



क्या होता यदि अविकसित/विकासशील भारत भी 1970 के दशक से ही IMF से अपनी GDP का चार गुना तक ऋण लेकर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास कर लेता?

UK, USA, JAPAN, GERMANY, FRANCE, ITLY इन सभी देशो ने यही किया. उस समय IMF की एक ही शर्त होती थी कि ऋण को चुकाने की पक्की गारंटी चाहिए, भले ही ब्याज देने के लिए नया ऋण ही क्यों न लेना पड़े.
इन तथाकथित विकसित देशो ने IMF से सस्ती दरों पर जमकर ऋण लिया. उस ऋण से नयी नयी कम्पनिया बनाकर आधारभूत ढांचागत सरंचना का निर्माण और औद्योगिक विकास किया. ऋण लेकर बनायीं गयी इन कंपनियों को शेयर बाजार में नामांकित करके ऊँचा लाभ अर्जित किया, जिसे पुनः शेयर बाजार में निवेश कर दिया गया, तदोपरांत परिस्तिथिनुसार ऋण तथा ब्याज IMF को लौटते भी रहे तथा नया ऋण लेते रहे.
ऋण लेकर विकास करने की व्यवस्था का यह प्रतिमान विगत 40-50 वर्षो तक अभूतपूर्व रूप से सफल भी रहा. आज ब्रिटेन के ऊपर उसकी अर्थव्यवस्था से तीन गुना ज्यादा बाहरी कर्ज चढ़ा हुआ है, (ब्रिटेन के ऊपर बाह्य ऋण 9.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर्स है, जबकि उसकी अर्थव्यवस्था लगभग 3.2 ट्रिलियन डॉलर्स की ही है). वर्तमान में ब्रिटेन का ब्याज देने के लिए लिये हुए ऋण का भुगतान असुंतलन उनकी GDP का 3% तक पहुँच गया है.
सिंगापुर पर बाह्य ऋण का बोझ उनकी GDP का चार गुना यानि 400% से भी ज्यादा है, इसी तरह जापान पर 100%, फ्रांस पर 400%, अमेरिका पर 100%, यूरोपीय यूनियन पर 190% कर्ज का बोझ है.

विकास के लिए चीन द्वारा IMF से ऋण लेकर बनायीं कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में निवेश करके धन कमाने से इतर तरीका अपनाया गया. चीन ने बैंको का अधिग्रहण किया और व्यापारिक समूहों को सस्ती दरो पर ऋण देना प्रारम्भ किया, हलाकि बैंको औव्यापारिक प्रतिष्ठानों के मध्य यह अलिखित समझौता था कि ऋण चुकाना नहीं है बल्कि अर्थव्यवस्था को बड़ा करना है ताकि बैंक अपनी ऋण दी हुयी पूँजी बढ़े हुए व्यापार से अर्जित लाभ द्वारा वसूल कर ले. इसलिए चीन की बैंकिंग व्यवस्था जनहितकारी न होकर घोर राष्ट्रवादी है जिसमे व्यक्ति या व्यापारिक समूहों को ऋण राष्ट्रनीति के अंतर्गत दिया जाता है जहाँ व्यक्तिगत लाभ/अचल सम्पति निर्माण का कोई स्थान नहीं है. संभवतः चीन पर आतंरिक ऋण उसकी GDP का 12 गुना यानि 1200% से भी ज्यादा हो सकता है. जबकि खता-बही में चीन का बाह्य ऋण उसकी GDP का लगभग 16%, और कुल ऋण 66% ही है.

चीन का आर्थिक विकास प्रतिमान अनुकरण करने के योग्य ही नहीं है, देर-सबेर इसकी हवा निकलना निश्चित है. वर्तमान में तथाकथित विकसित देशो का ऋण-विकास मॉडल संभव नहीं है क्योकि मंदी, युद्ध, विफल साम्यवाद (पूंजीवाद में निहित साम्यवाद भी), और शेयर बाजार के गिरने से उपजे भुगतान असुंतलन से महंगाई, बेरोजगारी और राजनितिक अस्थिरता का जोखिम उठाना व्यवहारिक नहीं रह गया है.

यदि समय रहते भारत के राजनेता 1970-80 के दशक में इस दौड़ में कूद पड़ते और आज भारत के ऊपर भी अमेरीका, जापान जितना ही ऋण होता तो भारत एक अतिविकसित देश बन चुका होता. भारत में तमाम वो सुविधाएं और अधोसरंचना उपलब्ध होती जो आज जापान, अमेरिका, ब्रिटेन आदी देशो में है. देश से गरीबी दूर हो चुकी होती.

परन्तु तात्कालिक राजनेताओ में दूरदृष्टि का अभाव, अर्थव्यवस्था को साधने के कौशल का ना होना, और राष्ट्रहित के स्थान पर व्यक्तिगत हितो को ऊपर रखने की मानसिक बीमारी के चलते यह सुनहरा अवसर हाथ से निकल गया.

वर्तमान समय में ऋण के चक्रव्यूह में उलझना हितकारी नहीं है इससे राष्ट्र के टूटने तक का आतंरिक और बाहरी खतरा उत्पन्न हो सकता है. अभी यह खतरा कुछ छोटे देशो पर मंडरा रहा है पर शीघ्र ही ऐसा विकसित देशो के साथ भी हो सकता है, और तब ऐसे देश विघटन का दंश झेलेंगे, अपनी प्रतिष्ठा खो देंगे, बेकारी, महंगाई, अभाव आदि से उपजे गृह युद्ध के पहले चरण में धकेल दिए जायेंगे, राजनितिक नेतृत्व अप्रासंगिक बन जायेगा. ऐसा होते देखना कोई भी देश, जनता और राजनैतिक नेतृत्व नहीं चाहेगा.

उपलब्ध विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प है सांस्कृतिक और सामाजिक नवचेतना का पुनर्जागरण करना. आर्थिक विकास इसका मात्र एक प्रतिफल होता है, विराट उद्देश्य तो विश्व को नया नेतृत्व तथा राह प्रदान करना है ताकि भारत विश्व गुरु के रूप में सदियों तक सकल विश्व पर राज कर सके.
यदि आप संवेदनशील है, अपनी आँखे खुली रखते है, और किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त है तो आप जान सकेंगे कि भारत का वर्तमान नेतृत्व इसी दिशा में अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अविरल कार्यरत है.

जातिवाद, कट्टर इस्लाम, भ्रष्टाचार, विपन्नता, और इंजीलवाद हमारी राह के रोड़े है, भारत देश की स्वर्ण धरा पर ऐसी खरपतवार को उखाड फेंके बिना राष्ट्र और हिन्दू चेतना के नवजागरण का यह महायज्ञ संपन्न नहीं हो सकेगा.

हम सभी को यथाशक्ति इस हेतु योगदान करने के लिए तत्पर और समर्थ रहना होगा.
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आलेख सन्दर्भ-
1- ब्रिटेन को पछाड़ कर भारत 2022 में विश्व की पांचवी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बना.
2- सफल मोदिनोमिक्स.

12 August 2022

रक्षाबंधन

प्रतिवर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है,  इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं।  यह रक्षा सूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में उसका बड़ा महत्व है।





वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि :-.

इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है, (१) दूर्वा (घास), (२) अक्षत (चावल), (३) केसर, (४) चन्दन, (५) सरसों के दाने।


इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।


इन पांच वस्तुओं का महत्त्व:-

(१) दूर्वा - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बदती रहें। दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।

(२) अक्षत - हमारी प्रभु के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे।

(३) केसर - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उसके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।

(४) चन्दन - चन्दन की प्रकृति शीतल होती है और यह सुगंध देता है। उसी प्रकार उसके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो। साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।

(५) सरसों के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें।


इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम प्रभु को अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे।

महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी। जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई।

इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते समय ये श्लोक बोलें

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।

तेन त्वाम रक्ष बध्नामि, रक्षे माचल माचल:


शुभ रक्षाबंधन