पति-पत्नी के मध्य वैवाहिक प्रतिबद्धता, परस्पर उत्तरदायित्व, विशेषाधिकारो
एवं मान-सम्मान का वार्षिक नवीनीकरण
क्वांटम भौतिकी के एक सिद्धांतानुसार युग्मित इलेक्ट्रान एक जैसी प्रतिक्रिया देते है चाहे इनके बीच हज़ारो किलोमीटर की दूरी ही क्यों न हो. इनको प्रथक करना संभव नही होता.
★यही युग्मन पति-पत्नि के मध्य बनाने के लिए करवा चौथ के व्रत का प्रावधान है.
करवा चौथ सिर्फ पूजा पाठ नही है बल्कि यह एक बहुत उच्चकोटि का विज्ञान है जिसमे प्रकृति प्रदत्त शक्तियों का अपने सांसारिक हितो के लिए उपयोग करने का जटिल ज्ञान और विधि समाहित है जिसमे यम से अपने मृत पति को वापस प्राप्त करने की शक्ति भी है.
करवा चौथ का व्रत महिलाओ ले लिये रक्त शुद्धिकरण, अंतःस्राव नियमतिकरण, शक्ति (ऊर्जा) संचरण को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है. इसमें शिव-पार्वती की पूजा उपासना करके चंद्रमा को जल का अर्ध्य देकर निर्जला व्रत पूर्ण किया जाता है.
शिव पार्वती (अर्धनारीश्वर) पति पत्नी के एकाकार होने का प्रतीक और माध्यम है. निर्जला व्रत रक्त शुध्दि, चंद्रमा अंतःस्राव का नियमतिकरण और जल का अर्ध्य ऊर्जा संचरण के लिये है.
करवा चौथ व्रत में पति-पत्नी के मध्य कई विशेष गुण जैसे अटूट आपसी प्रेम, सत्यनिष्ठा, निस्वार्थता, सहनशीलता, विश्वास और एक दूसरे के प्रति ढेर सारी कृतज्ञता समावेशित है
विवाहित युगल की सप्तपदी से प्रारंभ हुई जीवन यात्रा उपरोक्त वर्णित गुणों से सरोबार होकर जब करवा चौथ व्रत को प्राप्त होती है तब युगल एक 'युग्म' हो जाता है, और तब उन्हें प्रथक करना असंभव होता है.
चूँकि महिला देह चंद्रमा से ज्यादा प्रभावित होती है इसीलिये व्रत पत्नी करती है और सहयोग पति परमेश्वर का होता है.
करवा चौथ सिर्फ एक दिन का व्रत नही है यह पति पत्नी के मध्य व्यतीत किये गए प्रतिदिन के जीवन और इसके विशिष्ट गुण-धर्म के निर्वाह की परिणिति है.
"विवाहित युगल को अपृथकीय युग्म में बदलने हेतु करवा चौथ का व्रत होता है"
- हर्ष कुमार लाल
(यह लेख विज्ञानं सम्मत एवं वैदिक ज्ञान की अनुभूति पर आधारित है जो सत्य है )